Devraha baba gyan -6

सकृत्प्रपन्नरक्षणं प्रसिद्धमेव ते व्रतम्,
श्रुतं मया च भूरिशो भवामि तेन निर्भयः.
अतो न दोषदर्शने प्रभुर्भवान् हिसाम्प्रतं,
नवीनमार्गसंश्रयो न शोभनं भवेदिह. (६६)

भगवान एक बार भी शरण में आये हुए जीव की रक्षा करने की आपकी प्रतिज्ञा प्रसिद्ध है और मैंने भी इसे सुना है इसी से मैं निर्भय हो गया हूँ. अतः भगवान इस समय आप मेरे दोष नहीं देख सकते हैं. नवीन मार्ग अपनाने में बड़ी कठिनाई होगी और इसमें शोभा भी नहीं है. (६६)

प्रभु की प्रतिज्ञा है कि वह शरण में आये हुए का कभी त्याग नहीं करते हैं. कोई कितना बड़ा पापी भी क्यों न हो अगर वह प्रभु की शरण में आ जाता है तो प्रभु उसे स्वीकार कर लेते हैं और उसे अभय प्रदान करते हैं – ‘मम पन सरनागत भयहारी’ / ‘कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू, आएँ सरन तजउ नहीं ताहू’... जिसने प्रभु के इस वचन को सुना है वह निर्भय हो जायेगा.. क्योंकि उसे पता चल जायेगा कि कमी अपनी तरफ से ही है कि अब तक शरण नहीं हुए हैं.. शरण होते ही हम प्रभु के हो जाते हैं. जब तक शरण नहीं हुए हैं तब तक ही पापों के हैं मतलब पापी हैं.. शरण जाते ही भागवत हो जाते हैं.. जब कोई केवल प्रभु को देखता है ( शरणागत होता है ) तो प्रभु भी केवल उसी को देखते हैं उसके पापों को नहीं..

‘भक्ति भक्त भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक’ – प्रभु और गुरु में कोई भेद नहीं है इसीलिए यह बात पूज्य बाबा से निवेदित करी जा रही है.. बाबा की शरण हो जाना ही श्रेयस्कर है क्योंकि अपने से और कोई साधन बन भी नहीं सकता. इसलिए कोई नया मार्ग अपनाने में बहुत कठिनाई है.. साथ में दूसरी बात यह भी है कि किसी नए मार्ग का अवलंब लेने की आवश्यकता भी क्या है जब ‘शरणागति’ से उत्तम साधन कोई हो ही नहीं सकता जिसकी महिमा स्वयं श्री गोविन्द ने गाई है, जो गीता का सार है.. इसलिए बाबा की शरण होने में ही शोभा है.

‘देवराहा बाबा स्तुति शतकम्’
रचयिता – अनंतश्री विभूषित श्रीसुग्रीव किलाधीश अयोध्या पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज
व्याख्याकर्ता – श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी महाराज
(‘प्रपत्ति प्रवाह’ ग्रन्थ से..)

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