DEVRAHA BABA STUTI SHATKAM

DEVRAHA BABA STUTI SHATKAM

 The glory of Brahmrishi Sri devraha baba, sung by His great disciple and devotee His Holiness Ayodhya peethadhishwar Jagatguru Ramanujacharya Sri Purushottmacharya ji maharaj in 100 verses. 
I followed it to a certain extent according to my poor lights. I shall do the ‘commentary’ on the same so that my mind may derive satisfaction from it. Equipped with what little intellectual and critical power I possess I shall write with a heart inspired by Sri Baba.
Let all good souls hear it with a feeling of delight… ~ Dr. Sumeet



Devraha Baba 

ब्रह्मर्षि योगिराज देवराहा स्तुति शतकम्

नमोस्मदाचार्यपरम्पराभ्यो नमो नमो भागवतव्रजेभ्यः
नमो नमोनंतपुरस्सरेभ्यो नमः श्रियै श्रीपतये नमोस्तु

हमारी आचार्य परम्परा तथा समस्त भगवत भक्तों को हमारा नमस्कार हो. भगवान शेषनाग से लेकर भगवती श्री जी तथा श्री पति नारायण को भी हमारा पुनः पुनः नमस्कार हो.

नमोस्तु देववन्दितान्घ्रिपंकजाय योगिने,
पुनर्वियोगिने प्रपंचपंकदोषदर्शिने.
सदा नमाँसि सन्तु तत्परागरेणुराशये,
सुवासिताय शोभनाय रोचनाय चेतसे. (१)

देवताओं के द्वारा भी जिनके चरणारविन्द वन्दनीय हैं, जो संसार के दोषों को जानते हुए भी उससे पृथक रहते हैं उन्हें हमारा नमस्कार हो. पुनः उनके चरणों की रज को जोकि सुगन्धित, सुन्दर तथा रुचिकर है हमारा बारम्बार नमस्कार हो. (१)

( ‘ब्रह्मर्षि योगिराज देवराहा स्तुति शतकम्’ को प्रातःस्मरणीय परम पूज्य संत शिरोमणि जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने अपने पूज्य गुरुदेव ब्रह्मर्षि योगिराज श्री देवराहा बाबा जी की स्तुति में रचा है.
“वस्तुतः श्री भगवान ही स्वयं कल्याणेछुक लोगों को अपने स्वरूप का परिचय कराने के लिये गुरु रूप में अभियुक्त होते हैं. उस पर भी यदि समर्थ गुरु की प्राप्ति हो जाए तो फिर तो मानव का परम सौभाग्य ही होता है जो श्री भगवान की प्राप्ति का सुनिश्चित प्रमाण होता है. आचार्य श्री को नारायण का प्रत्यक्ष विग्रह मानकर उनके समक्ष अपनी भावनानुसार उनकी महिमा का गुणगान करना साधकों को अतिशीघ्र चमत्कारिक लाभ उपस्थित कराता है. परमपूज्य श्री गुरुदेव देवराहा बाबा जी महाराज इस युग के अति व्यापक प्रत्यक्ष महा महिमामंडित महापुरुष के रूप में सुप्रसिद्ध हो गए हैं. वे लोग धन्य हैं जो किसी भी प्रकार उन अनंतशक्ति संपन्न महापुरुष से सम्बन्ध रखते हैं. जो लोग आज भी उनकी स्मृति सच्चे मन से करते हैं उनके जीवन के समस्त बाधक तत्व शान्त हो जाते हैं.
यह स्तोत्र जो सौ श्लोकों में लिखा गया है यह उनके चरणों में वैसे ही है जैसे हम सूर्य भगवान को अर्ध्य देते हैं. परन्तु इस स्वल्प साधन से भी साधक परम कल्याण प्राप्त करके धन्य हो रहे हैं. अतः जो लोग इस पथ पर चलेंगे उनके लिये यह एक प्रकाश की रेखा अवश्य है. भगवान गुरुदेव उन श्रद्धालु भक्तों का कल्याण करें. ~ स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज

परम पूज्य जगद्गुरु स्वामी श्री विश्वेशप्रपन्नाचार्य जी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि नमन जिनकी कृपा से मुझे पूज्य स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी के दिव्य दर्शन एवं ‘शतकम्’ प्राप्त हुआ. मेरे लिये शतकम् श्रीमद्भागवत के समान पूजनीय है. कारण ये है कि मेरे इस जन्म से पूर्व ही पूज्य देवराहा बाबा जी ने मेरे बारे में मेरी माताजी को बता दिया था. मैं तो पूज्य बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाया पर मन में उनके बारे में जानने की तीव्र इच्छा थी. वो इच्छा भी पूरी हो गयी जब शतकम् मिल गया. मैं बिलकुल योग्य नहीं इस बात के लिये जो कहने जा रहा हूँ, इसके लिये पहले से क्षमा याचना कर रहा हूँ... मैं बाबा जी को वैसे ही जानना चाहता था जैसे परीक्षित कृष्ण को जानना चाहते थे, और जिस प्रकार पूज्य श्री शुकदेवजी से उन्हें भागवत मिली उसी प्रकार मुझे पूज्य बड़े महाराज जी से ‘शतकम्’... आपको एक बात और बताता हूँ कि शतकम् के अंतिम श्लोकों में महाराज जी ने अपने को शुक बताया है, और हमारे लिये वो शुकदेवजी ही हैं. मैं एक-एक श्लोक को आपसे कहता चलूँगा, इन्हें श्रद्धा पूर्वक सुनिए, गाईये.. इससे आप अपने पर बाबाजी की कृपा का अनुभव करेंगे.





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Radhe Radhe 

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